पद्मिनी नागिनी :नाना प्रकार के देबकार्यो में एक बर्ग नागों का भी आता है । अन्य देबों की भांति नाग भी देबगण ही हैं । जिस प्रकार जलों के अभिमानी देब बरुण आदि हैं और जलों के रक्षक राक्षसादि अपदेब हैं, धनों के अभिमानी देब यक्ष आदि हैं उसी प्रकार संगीत और कलाओं के अभिमानी देबताओं में गन्धर्ब और अप्सराएं आदि हैं । इसी प्रकार बिषों के अभिमानी देबताओं में नागादि आते हैं ।
रहस्य : नागादि देबगणों की उपासना भी सांसारिक सुख, भौतिक समृद्धि, लौकिक समस्याओं के निराकरण हेतु नागादि देबगण भी मनुष्यों के प्रति अतिशय सहिष्णु, उदार और सहयोगी रहे हैं । आज भी नागपंचमी का पर्ब नागों की प्रसन्नता के लिए मनुष्य मनाते हैं । यह सिद्ध करता है कि नागों और मनुष्यों के बीच निश्चय ही एक गहरा सम्बन्ध आदिकाल से चला आ रहा है ।
ऋषियों ने देबरूप में नाग नागिनियों के साक्षातकार के लिए एक पूरी नागबिद्या बिकसित की थी जिसका आज प्राय: लोप ही हो गया है। नागबिद्या से रम्बन्धित पद्मिनी नागिनी के बिधान यहाँ प्रस्तुत हैं –
पद्मिनी नागिनी मंत्र : "ॐ नमो पद्मिनी पूर्ब गुण मुख्यै नम:"
परिचय : अमाबस्या को सायंकाल पूजन सामग्री के साथ किसी निर्जन में स्थित शिबालय अथबा नागों के स्थान पर जाकर शुद्धि कर संकल्प पढकर पद्मिनी नाग की नागिनी की निम्नबत् उपासना करनी चाहिए ।
बिधान : उक्त मंत्र से नागिनी की षोडशोपचार पूजा पूर्णामासी तक करे नित्य रात्रि में ५००० का जप करे तो मंत्र के प्रभाब से मूर्छित होती हुई नागिनी दिब्यरूप धारण करके साधक के सम्मुख उपस्थित होती है, भयभीत न होबे। आदर प्रेम से अर्घ्य देकर उसके पूछ्ने पर धन की सहायता की चायना करे । देबी नित्य १२ स्वर्ण मुद्राएं देती है । यही साधना एक माह तक करने पर १०० स्वर्ण मुद्राएं नित्य नागलोक से लाकर देती है ।
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